छत्तीसगढ़ की गोदना परंपरा (Godna Tradition) केवल शारीरिक सजावट का माध्यम नहीं है, बल्कि यह यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान और गहरी आस्था का प्रतीक है। इसे छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में एक अमर शृंगार माना जाता है, जो मृत्यु के बाद भी व्यक्ति के साथ जाता है।

गोदना: इतिहास और महत्व

गोदना शब्द का शाब्दिक अर्थ है “चुभाना” या “छेदना”। इस कला में, त्वचा पर सुई चुभोकर उसमें प्राकृतिक रंगों (जैसे- काजल, तेल या वनस्पति के रस) से बने लेप को भरा जाता है। यह एक प्रकार का स्थायी टैटू है, जिसे सदियों से आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की महिलाएं अपनाती आ रही हैं।

गोदना का महत्व केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं है। इसके पीछे कई धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं:

  • अमर गहना: मान्यता है कि मृत्यु के बाद सभी सांसारिक वस्तुएं, यहाँ तक कि गहने भी, यहीं रह जाते हैं, लेकिन गोदना ही एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति के साथ स्वर्ग तक जाती है।
  • पहचान और सुरक्षा: अलग-अलग जनजातियों और समुदायों में गोदने के खास प्रतीक और डिजाइन होते हैं, जो उनकी पहचान को दर्शाते हैं। माना जाता है कि ये चिह्न बुरी शक्तियों और बुरी नजर से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • चिकित्सीय लाभ: कुछ समुदायों में यह भी माना जाता है कि गोदना एक्यूप्रेशर की तरह काम करता है, जो शरीर के दर्द और कुछ बीमारियों से राहत दिलाने में सहायक होता है।
  • रामनामी समाज: छत्तीसगढ़ में रामनामी समाज एक विशेष उदाहरण है, जहाँ लोग अपने पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदवाते हैं। यह प्रथा धार्मिक भक्ति और सामाजिक समानता का प्रतीक है, जो भेदभाव को चुनौती देती है।

गोदना के प्रकार और प्रतीक

छत्तीसगढ़ की विभिन्न जनजातियों में गोदना के अलग-अलग प्रकार और प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए:

  • गोंड जनजाति: इनके लोग अपने माथे पर त्रिशूल का चिह्न गुदवाते हैं, जो शिव का प्रतीक है।
  • बैगा जनजाति: बैगा महिलाएं अक्सर अपनी पीठ पर मोर का चिह्न गुदवाती हैं। उनके घुटने पर सूर्य का चिह्न भी अंकित होता है, जिसे वे “दवरी” कहती हैं।
  • कोल जनजाति: कोल समुदाय के लोग अपनी कलाई पर मोर का चिह्न गुदवाते हैं।
  • अन्य प्रतीकों में बिच्छू, फूल-पत्तियां, देवी-देवताओं की आकृतियाँ और जानवरों के चित्र शामिल होते हैं।

आजकल, जहाँ एक ओर गोदना की पारंपरिक कला लुप्त होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ कलाकारों ने इसे आधुनिक रूप देकर कपड़ों और अन्य वस्तुओं पर उकेरना शुरू किया है। इससे न केवल इस कला को नया जीवन मिला है, बल्कि यह कलाकारों के लिए आय का साधन भी बन रहा है।

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