छत्तीसगढ़ के उत्तर-पश्चिमी छोर पर स्थित कोरिया रियासत, जो कभी गोंडवाना साम्राज्य का हिस्सा रही और बाद में चौहान वंश के शासकों के अधीन आई, अपनी एक विशिष्ट पहचान रखती है। इस रियासत की प्रशासनिक और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र ‘रामानुज विलास’ (कोरिया पैलेस) है। बैकुंठपुर के महलपारा (पूर्व नाम राजापारा) में स्थित यह महल भारत के उन गिने-चुने राजमहलों में से एक है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का संतुलन 20वीं सदी के पूर्वार्ध में ही देख लिया गया था।
1. निर्माण की पृष्ठभूमि: एक महत्वाकांक्षी विजन (1923-1946)
इस महल का निर्माण महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव के कार्यकाल के दौरान हुआ। यह वह दौर था जब रियासतें अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए वास्तुकला का सहारा लेती थीं।
- डिजाइन और निवेश: 1923 में जब इस महल का नक्शा तैयार हुआ, तब 7,000 रुपये की लागत केवल कागज पर इसके स्वरूप को उतारने के लिए दी गई थी। यह राशि उस समय की अर्थव्यवस्था के हिसाब से अत्यंत विशाल थी, जो यह संकेत देती है कि महाराजा इसे ‘स्टेट ऑफ द आर्ट’ बनाना चाहते थे।
- इंजीनियरिंग की गहराई: महल की नींव 12 फुट गहरी रखी गई थी। इतनी गहरी नींव रखने का उद्देश्य केवल संरचनात्मक मजबूती नहीं थी, बल्कि यह महल के भारी गुंबदों और ऊपरी मंजिल के भार को सहन करने के लिए एक ‘शॉक एब्जॉर्बर’ के रूप में तैयार की गई थी।
- श्रम का प्रवास: इसके निर्माण के लिए बनारस, राजस्थान और बंगाल से विशेष कारीगर बुलाए गए थे। चूना-पत्थर की घिसाई और जुड़ाई के लिए पारंपरिक विधियों का उपयोग हुआ, जिससे दीवारें आज भी बिना किसी दरार के खड़ी हैं।

2. वास्तुकला का सूक्ष्म विश्लेषण
कोरिया पैलेस की डिजाइन शैली ‘इंडो-सारसेनिक’ (Indo-Saracenic) और राजपुताना कला का एक उत्कृष्ट मिश्रण है।
- गुंबदों की प्रतीकात्मकता: महल के चार गुंबद केवल सजावटी नहीं हैं। इनमें मुगलकालीन स्थापत्य की गोलाई और राजस्थानी किलों की छतरियों का प्रभाव है। ये गुंबद महल के विभिन्न कोनों को एक संतुलित ज्यामितीय (Symmetrical) रूप देते हैं।
- सामग्री का चयन (स्थानीय बनाम वैश्विक): जहाँ बुनियादी संरचना के लिए स्थानीय चूना पत्थर का उपयोग हुआ, वहीं सौंदर्यबोध के लिए इटली से विशेष मार्बल का आयात किया गया। चूने के प्लास्टर में गुड़, बेल और सन जैसी प्राकृतिक चीजों का उपयोग किया गया था, ताकि दीवारों में प्राकृतिक शीतलता बनी रहे।
- गुप्त गार्डन (The Architectural Marvel): महल की छत पर बना ‘गुप्त गार्डन’ इंजीनियरिंग का एक चमत्कार था। किसी इमारत की छत पर बगीचा बनाने के लिए जल निकासी (Drainage) और वाटरप्रूफिंग की जो तकनीक 1920 के दशक में अपनाई गई, वह शोध का विषय है। यह भारत के उन दुर्लभ उदाहरणों में से है जहाँ छत पर एक पूर्ण विकसित पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) बनाया गया था।
3. ऐतिहासिक और सामरिक महत्व
- 300 वर्ष पुरानी तोप: महल के शीर्ष द्वार पर रखी तोप इस बात का प्रमाण है कि चौहान शासक अपनी रक्षात्मक सैन्य शक्ति को लेकर कितने सजग थे। यह तोप महल के निर्माण से बहुत पहले की है, जिसे नई संरचना में सम्मानजनक स्थान दिया गया।
- प्रशासनिक केंद्र: महल में दो प्रांगण बनाए गए थे। बाहरी प्रांगण (External Courtyard) सार्वजनिक सुनवाई और दरबार के लिए था, जबकि आंतरिक प्रांगण (Internal Courtyard) राजपरिवार की निजता के लिए समर्पित था।
4. महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव का योगदान
इस महल का नाम ‘रामानुज विलास’ महाराजा के नाम पर रखा गया था। महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव केवल एक शासक नहीं थे, बल्कि वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे। उन्होंने कोरिया रियासत को भारतीय संघ में शामिल करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। यह महल उसी ऐतिहासिक विलय की वार्ताओं और महत्वपूर्ण निर्णयों का मूक गवाह रहा है।
5. सामाजिक प्रभाव और विरासत
आज जिसे हम महलपारा कहते हैं, वह कभी राजापारा के रूप में इस महल के इर्द-गिर्द ही विकसित हुआ। यह महल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और पहचान का धुरी रहा है। आज भी इसके कक्षों की नक्काशी और इसके द्वारों की विशालता छत्तीसगढ़ के “राजसी युग” की कहानियाँ सुनाती है।
कोरिया महल (रामानुज विलास) महज एक रिहाइश नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक अस्मिता का एक दस्तावेज है। इसकी बनावट में लगा हर पत्थर और इसकी छत पर महकने वाले ‘गुप्त गार्डन’ के फूल उस काल की संपन्नता और कलात्मक गहराई के प्रतीक हैं।

