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Author: हमर गोठ
मधेश्वर पहाड़, छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कुनकुरी ब्लॉक में स्थित एक अद्वितीय प्राकृतिक संरचना है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी शिवलिंग के आकार की आकृति है, जिसके कारण इसे दुनिया के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में भी जाना जाता है। यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और रोमांच के शौकीनों के लिए भी एक खास जगह बन गया है। भौगोलिक संरचना और उत्पत्ति: मधेश्वर पहाड़ एक विशाल चट्टान है, जो लगभग 85 फीट ऊँचा और 105 फीट गोलाकार है। इसकी ढलानदार आकृति और शिखर का आकार बिल्कुल एक शिवलिंग जैसा है, जो…
राजिम कुंभ कल्प, छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव है, जो प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लगभग 15 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है। यह पवित्र संगम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के राजिम नामक स्थान पर होता है, जहाँ तीन नदियाँ – महानदी, पैरी और सोंढुर – मिलती हैं। इस त्रिवेणी संगम को छत्तीसगढ़ का ‘प्रयाग’ भी कहा जाता है, जो इसकी धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। https://twitter.com/ChhattisgarhCMO/status/1886346767127478394 पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व: राजिम का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान राम ने अपने वनवास काल के दौरान इस संगम में स्नान…
खुटाघाट बांध, जिसे संजय गांधी जलाशय के नाम से भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह बांध न केवल सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। खारून नदी पर बना यह बांध, प्रकृति और इंजीनियरिंग का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। इतिहास और निर्माण: खुटाघाट बांध का निर्माण 1930 में पूरा हुआ था। इस बांध के निर्माण के दौरान लगभग 208 गांवों को मिला दिया गया था, जो इसकी विशालता और क्षेत्र के लिए इसके महत्व को दर्शाता है। बांध के निर्माण से…
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के ऐतिहासिक शहर रतनपुर में स्थित श्री महामाया देवी मंदिर, एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह 52 शक्तिपीठों में से एक होने के कारण विशेष महत्व रखता है। माँ दुर्गा और महालक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर, शक्ति और आस्था का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। इतिहास और मान्यताएं: महामाया मंदिर का इतिहास 12वीं-13वीं शताब्दी का है, जब इसे कलचुरी राजवंश के राजा रत्नदेव ने बनवाया था। कहा जाता है कि राजा रत्नदेव को यहाँ देवी काली के दर्शन हुए थे, जिसके बाद…
दाऊ दुलार सिंह मंदराजी, जिन्हें प्यार से ‘दाऊ मंदराजी’ के नाम से जाना जाता है, छत्तीसगढ़ के एक ऐसे लोक कलाकार थे जिन्होंने अपनी कला और समर्पण से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊँचाई दी। उन्हें छत्तीसगढ़ में ‘नाचा’ नामक लोक कला के पुनर्जीवन और लोकप्रियता का श्रेय दिया जाता है। वे न केवल एक कलाकार थे, बल्कि एक गुरु, एक निर्देशक, और सबसे बढ़कर, छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के सच्चे उपासक थे। प्रारंभिक जीवन और कला की ओर रुझान: दाऊ मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को राजनांदगांव जिले के रवेली गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ…
आचार्य विद्यासागर जी महाराज एक प्रमुख दिगंबर जैन आचार्य थे, जिन्होंने अपना जीवन जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रचार और प्रसार में समर्पित कर दिया। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे – विद्वान, विचारक, लेखक, कवि, और समाज सुधारक। उनके विचारों और शिक्षाओं ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: 10 अक्टूबर, 1946 को कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा में जन्मे, उनका नाम विद्याधर रखा गया था। उनके पिता, मल्लप्पा, बाद में मुनि मल्लिसागर बने, और उनकी माता, श्रीमती, आर्यिका समयमति कहलाईं। उन्होंने नौवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनका मन…
धुड़मारास। नाम सुनते ही एक शांत सी तस्वीर उभर आती है – घने जंगल, बहती नदी, और आदिवासियों की एक अनोखी दुनिया। ये सिर्फ एक गाँव नहीं, ये छत्तीसगढ़ के दिल में छुपा एक एहसास है, एक कहानी है, एक सफर है खुद को, प्रकृति को और ज़िंदगी को करीब से जानने का। कांगेर घाटी नेशनल पार्क की गोद में बसा ये गाँव, आपको शहरों की भीड़-भाड़ से दूर, एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। यहाँ की हवा में एक ताजगी है, मिट्टी में एक अपनापन, और लोगों में एक सादगी जो आजकल मुश्किल से मिलती है। कैसे…
बस्तर संभाग के गढ़ बेंगाल, नारायणपुर निवासी पंडीराम मंडावी को हाल ही में प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 68 वर्षीय मंडावी, जो गोंड मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, अपनी अद्वितीय शिल्पकला के लिए जाने जाते हैं। लकड़ी और बांस की कला का जादूगर मंडावी मुख्यतः लकड़ी और बांस से बनी वस्तुओं को बनाने में माहिर हैं। विशेषकर बस्तर की पारंपरिक बांसुरी, जिसे ‘सुलुर’ कहा जाता है, उनके द्वारा बनाई गई बांसुरी काफी प्रसिद्ध हैं। इन बांसुरीओं को बनाने के लिए वे विशिष्ट प्रकार के बांस का उपयोग करते हैं, जिससे इनका स्वर और ध्वनि बेहद मधुर…
बस्तर का दशहरा भारतीय त्योहारों में एक अनूठा और विशेष स्थान रखता है, जो न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों के कारण भी विशेष है। इस दशहरे की शुरुआत काछनगादी अनुष्ठान से होती है, जो बस्तर की पनका जाति द्वारा संपन्न किया जाता है। यह अनुष्ठान बस्तर दशहरे की सफलता के लिए आवश्यक होता है, जिसमें काछन देवी की अनुमति ली जाती है। काछनगादी रस्म के बिना दशहरे का उत्सव अधूरा माना जाता है, और यह रस्म बस्तर के राज परिवार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध को दर्शाता है। काछनगादी…
छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले में स्थित कोसमनारा गांव, श्री श्री 108 श्री सत्यनारायण बाबा के धाम के लिए जाना जाता है। यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत प्रसिद्ध है और भगवान विष्णु के अवतार श्री सत्यनारायण बाबा की पूजा के लिए समर्पित है। श्री श्री 108 श्री सत्यनारायण बाबा, जिन्हें भक्त प्यार से “बाबाजी” के नाम से जानते हैं, एक प्रसिद्ध भारतीय संत और आध्यात्मिक गुरु हैं। उनका जन्म 12 जुलाई 1984 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के देवरी गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। बाबा सत्यनारायण 1998 से ही तपस्या में लीन हैं। 2003 में…