आचार्य विद्यासागर जी महाराज एक प्रमुख दिगंबर जैन आचार्य थे, जिन्होंने अपना जीवन जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रचार और प्रसार में समर्पित कर दिया। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे – विद्वान, विचारक, लेखक, कवि, और समाज सुधारक। उनके विचारों और शिक्षाओं ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
10 अक्टूबर, 1946 को कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा में जन्मे, उनका नाम विद्याधर रखा गया था। उनके पिता, मल्लप्पा, बाद में मुनि मल्लिसागर बने, और उनकी माता, श्रीमती, आर्यिका समयमति कहलाईं। उन्होंने नौवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनका मन बचपन से ही धर्म की ओर आकर्षित था।
दीक्षा और आचार्य पद:
मात्र 22 वर्ष की अवस्था में उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की, जो उनके आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत थी। 22 नवंबर, 1972 को उन्हें आचार्य पद से विभूषित किया गया, एक महत्वपूर्ण मोड़ जिसने उनके जीवन को नई दिशा प्रदान की।
विद्वत्ता और भाषा ज्ञान:
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी और कन्नड़ जैसी कई भाषाओं के ज्ञाता थे। उनकी भाषाई दक्षता ने उन्हें अपने विचारों को व्यापक रूप से प्रसारित करने में मदद की।
साहित्यिक रचनाएँ:
आचार्य विद्यासागर ने हिंदी और संस्कृत में विपुल साहित्य की रचना की। उनकी प्रमुख कृतियों में “निरंजना शतक,” “भावना शतक,” “परीषह जाया शतक,” “सुनीति शतक,” “शरमाना शतक,” और काव्य “मूक माटी” शामिल हैं। उनकी रचनाओं में आध्यात्मिकता, दर्शन और सामाजिक संदेशों का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।
सामाजिक कार्य:
आचार्य विद्यासागर ने कई धार्मिक और सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने गौशालाओं, स्वाध्याय शालाओं, औषधालयों आदि की स्थापना में अपना सहयोग दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्रों में वे सदैव सक्रिय रहे। उन्होंने युवाओं को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किए।
समाधि:
18 फरवरी, 2024 को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरी तीर्थ में उन्होंने सल्लेखना के माध्यम से समाधि प्राप्त की। सल्लेखना जैन धर्म में मृत्यु का एक पवित्र तरीका है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अन्न-जल का त्याग करता है और अंततः शरीर का त्याग कर देता है। उनकी समाधि ने जैन समुदाय को गहरा शोक पहुंचाया, और उनके अनुयायियों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। चंद्रगिरी पर्वत पर उनका समाधि स्थल बनाया गया है, जो उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखेगा और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
प्रभाव:
आचार्य विद्यासागर जी महाराज का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। वे एक अद्वितीय विद्वान, विचारक, लेखक और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना जीवन धर्म और समाज सेवा में समर्पित कर दिया। उनके द्वारा किए गए कार्यों को सदैव याद किया जाएगा। उनके विचारों और शिक्षाओं ने लाखों लोगों के जीवन को नई दिशा प्रदान की। वे जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रकाश स्तंभ थे, जिन्होंने उन्हें धार्मिक मूल्यों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उनका जीवन त्याग, तपस्या और सादगी का प्रतीक है, जो न केवल जैन समुदाय, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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