बस्तर संभाग के गढ़ बेंगाल, नारायणपुर निवासी पंडीराम मंडावी को हाल ही में प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 68 वर्षीय मंडावी, जो गोंड मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, अपनी अद्वितीय शिल्पकला के लिए जाने जाते हैं।
लकड़ी और बांस की कला का जादूगर
मंडावी मुख्यतः लकड़ी और बांस से बनी वस्तुओं को बनाने में माहिर हैं। विशेषकर बस्तर की पारंपरिक बांसुरी, जिसे ‘सुलुर’ कहा जाता है, उनके द्वारा बनाई गई बांसुरी काफी प्रसिद्ध हैं। इन बांसुरीओं को बनाने के लिए वे विशिष्ट प्रकार के बांस का उपयोग करते हैं, जिससे इनका स्वर और ध्वनि बेहद मधुर होती है। उनके द्वारा बनाई गई बांसुरी न केवल अपनी सुंदरता के लिए बल्कि अपनी उत्कृष्ट ध्वनि गुणों के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

इसके अलावा, उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है। उनके द्वारा बनाई गई लकड़ी की मूर्तियां और चित्र न केवल अत्यंत कलात्मक और सजावटी हैं बल्कि उनमें स्थानीय जनजातीय संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतिबिंब होता है।
पांच दशकों से कला की सेवा में
पिछले पांच दशकों से मंडावी बस्तर की आदिवासी कला और संस्कृति को संरक्षित करने और उसे नई ऊंचाइयों पर ले जाने में लगे हुए हैं। उन्होंने न केवल अपनी कला का प्रदर्शन देश के विभिन्न हिस्सों में किया है बल्कि आठ से अधिक देशों का दौरा भी कर चुके हैं। इन देशों में उन्होंने अपनी कलाकृतियों का प्रदर्शन किया है और स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों से भी सीखा है।
नई पीढ़ी को सिखाना है लक्ष्य
मंडावी का मानना है कि कला को आगे बढ़ाने के लिए नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करना बेहद जरूरी है। इसीलिए वे कई कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं, जिनमें हजारों कारीगरों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इन कार्यशालाओं में वे न केवल कारीगरों को तकनीकी ज्ञान प्रदान करते हैं बल्कि उन्हें बस्तर की पारंपरिक कलाओं के बारे में भी शिक्षित करते हैं।

पुरस्कारों से सम्मानित
पद्मश्री पुरस्कार के अलावा, मंडावी को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दाऊ मंदराजी सम्मान सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। केरल सरकार की ललित कला अकादमी ने उन्हें प्रतिष्ठित जे स्वामीनाथन पुरस्कार से भी नवाजा है। ये पुरस्कार उनके कलात्मक योगदान के लिए उन्हें मिली मान्यता हैं।
एक प्रेरणा
पंडीराम मंडावी न केवल एक कुशल शिल्पकार हैं बल्कि वे एक प्रेरणा भी हैं। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया के सामने रखा है और स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को प्रोत्साहित किया है। उनका जीवन और कार्य बस्तर के लिए एक गौरव का विषय है।