गेड़ी नृत्य छत्तीसगढ़ का पुरातन व पारंपरिक लोक नृत्य है। यह हरेली पर्व से जुड़ा हुआ लोक नृत्य है। अंचल का प्रथम पर्व है। इस दौरान गेड़ी का विशेष महत्व होता है। गेड़ी बांस से तैयार की जाती है। इसकी ऊंचाई 6 से 7 फीट होती है ऊंचाई पर पैर रखने के लिए नारियल की रस्सी से बांस की खपच्ची बांधी जाती है और गेड़ी को तैयार किया जाता है। गेड़ी में चढ़कर लय व ताल से गेड़ी नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है। इसके साथ शारीरिक संतुलन बनाये रखते हुये पद संचालन करते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के मारिया गौड़ आदिवासी अपने नृत्यों के लिए बहुत जाने जाते हैं।
प्राय: गेड़ी नृत्य सावन माह में होता है। नृत्य करने वाले नर्तकों की कमर में कौड़ी से जड़ी पेटी बंधी होती है। पारम्परिक लोकवाद्यों की थाप के साथ ही यह नृत्य ज़ोर पकड़ता जाता है। इस नृत्य के वाद्यों में मांदर, शहनाई, चटकुला, डफ, टिमकी तथा सिंह बाजा प्रमुख हैं।घोटुल के मुरिया युवक द्वारा लकड़ी की गेड़ी पर अत्यंत तीव्र गति से यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य को डीटोंग भी कहा जाता है।