मदकू द्वीप शिवनाथ नदी की धारा के दो भागों मे विभक्त होने से द्वीप के रूप मे प्रकृतिक सौन्दर्य परिपूर्ण अत्यंत प्राचीन रमणीय स्थान है। इस द्वीप पर प्राचीन शिव मंदिर एवं कई स्थापत्य खंड हैं। लगभग 10वीं 11वीं सदी के दो अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर इस द्वीप पर स्थित है। इनमे से एक धूमनाथेश्वर तथा इसके दाहिने ओर उत्तर दिशा में एक प्राचीन जलहरी स्थित है जिससे पानी का निकास होता है। इसी स्थान पर दो प्राचीन शिलालेख मिले हैं। पहला शिलालेख लगभग तीसरी सदी ई॰ का ब्राम्ही शिलालेख है। इसमें अक्षय निधि एवं दूसरा शिलालेख शंखलिपि के अक्षरों से सुसज्जित है। इस द्वीप में प्रागैतिहासिक काल के लघु पाषाण शिल्प भी उपलब्ध हैं। सिर विहीन पुरुष की राजप्रतिमा की प्रतिमा स्थापत्य एवं कला की दृष्टि से 10वीं 11वीं सदी ईसा की प्रतीत होती है। आज भी पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई मेँ गुप्तकालीन एवं कल्चुरी कालीन प्राचीन मूर्तियाँ मिली हैं। कल्चुरी कालीन चतुर्भुजी नृत्य गणेश की प्रतिमा बकुल पेड़ के नीचे मिली है। 11वीं शताब्दी की यह एकमात्र सुंदर प्रतिमा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार इस द्वीप का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में हुआ। द्वीप पर कच्छप (कछुए) के आकार में लगभग आधा दर्जन मंदिर हैं। मडकू द्वीप एक पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है क्योंकि यहीं पर शिवनाथ नदी उत्तर पूर्व वाहिनी में बदल जाती है। रतनपुर के कलचुरी राजा दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी में यहां बलि और अन्य अनुष्ठान करते थे। पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के अनुसार यह स्थल विष्णु पुराण में वर्णित मंडूक द्वीप है।
मदकू द्वीप का इतिहास
1985 में खुदाई के दौरान 19 मंदिरों के खंडहर और कई मूर्तियों की खोज की गई थी। इस क्षेत्र में छह शिव मंदिर, ग्यारह स्पार्तलिंग मंदिर, और एक उमा-महेश्वर और गरुड़रुधा लक्ष्मी-नारायण मंदिर की खोज की गई है। वहां बिखरे पत्थरों को खुदाई के बाद आपस में मिलाकर मंदिर का रूप दे दिया गया है। यहां मिले शिलालेखों के अनुसार 11वीं शताब्दी में यहां के मंदिर सबसे अच्छी स्थिति में थे।
मदकू द्वीप को ऋषि मांडुक्य के तपो स्थान के रूप में भी नामित किया गया है। कहा जाता है कि ऋषि मंडुक ने यहां मंडुकोपनिषद की रचना की इसलिए उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम मंडूक पड़ा। इस महाकाव्य के पहले खंड का छठा मंत्र सत्यमेव जयते भी संविधान में शामिल किया गया है।
मदकू द्वीप पर दो प्राचीन शिलालेख मिले हैं। तीसरी सदी का एक शिलालेख ब्राम्ही शिलालेख है। और दूसरा शिलालेख शंखलिपि में है। साथ ही प्रागैतिहासिक काल के लघु पाषाण शिल्प भी उपलब्ध हैं। सिर विहीन पुरुष की राजप्रतिमा की प्रतिमा भी अद्भुत है। गुप्तकालीन एवं कल्चुरी कालीन प्राचीन मूर्तियाँ भी यहां मिली हैं। कल्चुरी कालीन चतुर्भुजी नृत्य गणेश की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की एक बेहद सुंदर और अनोखी प्रतिमा है।
कैसे पहुँचें
अन्य प्रदेश से हैं राजधानी रायपुर के लिए सभी महानगरों से हवाई यात्रा संभव हैं। राजधानी रायपुर और बिलासपुर रेलवे जंक्शन से सभी शहरों से अच्छी तरह की रेल कनेक्टिविटी हैं। आप आराम से यहाँ तक की यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से यात्रा करना और भी सुगम हैं। यहाँ तक सड़क राजमार्ग से लगभग पूर्णतः जुड़ा हुआ हैं। नीचे शहरों से उनकी दुरी को प्रदर्शित कर रहे हैं –
RAIPUR | 85 KM |
BILASPUR | 40 KM |
MUNGELI | 52 KM |