भारत के इतिहास में कलचुरी राजवंश स्थान महत्वपूर्ण है 550 से लेकर 1750 तक लगभग 12 सौ वर्षो की अवधि में कलचुरी नरेश उत्तर अथवा दक्षिण भारत में किसी ना किसी प्रदेश पर राज्य करते रहे शायद ही किसी राजवंश ने इतने लंबे समय तक राज्य किया होगा।
कलचुरी वंश का मूल पुरुष कृष्णराज था जिसने इस वंश की स्थापना की और 500 से लेकर 575 ईसवी तक राज्य किया कृष्ण राज्य के बाद उसका पुत्र शंकरगंन प्रथम ने 575 से 600 ईसवी तक और शंकरगन के बाद उसका पुत्र बुधराज ने 600 से 620 ईसवी तक शासन किया किंतु 620 ईसवी के बाद लगभग 150 से 200 वर्ष तक कोई विवरण नहीं मिलता है।
नवी शताब्दी में कलचूरी ने साम्राज्य विस्तार किया और वामन राजदेव ने गोरखपुर प्रदेश पर अपने भाई लक्ष्मण राज को गद्दी पर बैठाया आगे चलकर वामराज का पुत्र त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाई वामराज देव की कालिंजर प्रथम और त्रिपुरी द्वितीय राजधानी रही रामराज देव त्रिपुरी के कलचुरी वंश का संस्थापक था।
इस समय कल छोरियों को चांदी नरेश कहा जाता था त्रिपुरी में स्थाई रूप से राजधानी स्थापित करने का श्रेय कोकल प्रथम को 875 से 900 है को कल अत्यंत प्राप्ति राजा था इसकी विषयों का उल्लेख बिल्हारी लेख से मिलता है।
कोकल के 18 पुत्रों में सबसे बड़ा शंकरगन दूसरा मुगदतुंग 900 से 925 ईसवी मैं त्रिपुरी की गद्दी प्राप्त हुई बिल्हारी अभिलेख से ज्ञात होता है कि मगद्दतुंग को 900 ईसवी में कौशल का राजा को पराजित कर कौशल पर अपना अधिकार जमा लिया था। कोकल के अन्य पुत्र अर्थात मगद्दतुंग का अनुज त्रिपुरी मंडल के मंडलअधी पति बने कुछ को बिलासपुर मंडल प्राप्त हुआ जिसमें से एक लाफा जमीदारी के अंतर्गत तुम्माड मैं जाकर बस गया।
तुम्माड कि यह शाखा महाकौशल की स्वतंत्रता में लगी रही जबकि त्रिपुरी शाखा का विस्तार उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम में हो गया मंडलेश्वर का या वंश तुम्माड में चलता रहा लेकिन बाद में कमजोर होने पर सोमवंशी ने यहां अपना अधिकार जमा लिया तब लक्ष्मण राज द्वारा त्रिपुरी में अपने पुत्र कलिंग राज को भेजा गया जिसमें ना केवल तुम्माड को अपने अंतर्गत किया बल्कि दक्षिण कौशल को भी अपने अंतर्गत कर लिया इसमें तुम्माड को अपनी राजधानी बनाई।
दक्षिण कोसल के इतिहास अर्थात छत्तीसगढ़ के इतिहास में भी कलचुरी वंश की अहम् भूमिका थी। इन्होने 1000 ई. से 1740 ई. तक शासन किया। कलचुरी राजवंश छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक समय तक शासन करने वाला वंश है।
कलचुरी वंश की स्थापना – कलचुरी वंश की स्थापना सन 1000 ई. में कलिंगराज ने की थी। कलचुरी वंश के अंतिम शासक रघुनाथ सिंह था। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ में अपनी प्रथम राजधानी तुम्माण को बनाया। मराठाओं के अधीनं शासन करने वाले प्रथम शासक रघुनाथ सिंह और अंतिम स्वतंत्र कलचुरी शासक यही था, मराठाओं के अधीन शासन करने वाला अंतिम शासक मोहनसिंह था। कलचुरी वंश के शासक की कुलदेवी ‘ गजलक्ष्मी ‘ थी। कलचुरी काल के प्रसिद्द कवि गोपाल मिश्र था।