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    Home»कहानियाँ»छत्तीसगढ़ के पवित्र महानदी की कहानी
    कहानियाँ

    छत्तीसगढ़ के पवित्र महानदी की कहानी

    हमर गोठBy हमर गोठJune 25, 20237 Mins Read
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    Mahandi River
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    छत्तीसगढ़ की एक प्रमुख नदी महानदी है जो सबसे बड़ी नदी होने के साथ छत्तीसगढ़ की गंगा नदी के नाम से जानी जाने लगी। जैसा कि नाम से पता चलता है, महा का अर्थ है महान या बड़ा और नदी का अर्थ है नदी।आइए जानें महानदी के इतिहास और इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में।

    मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ है। छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला था तथा इसके अलावा इसे महानंदा और नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है।  भारत की प्राचीनतम व पवित्रतम नदियों में से एक महानदी प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ व उड़ीसा राज्य में प्रवाहित होती है। नदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के धतरी जिले के निकट सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से होता है। इस नदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है एवं करीब 857 कि.मी. का सफर तय करते हुए यह नदी कटक नगर के समीप महानदी डेल्टा पर कई धाराओं में विभाजित होकर बंगाल की खाड़ी में समुद्र में समाहित हो जाती है। उड़ीसा व छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी होने के साथ ही यह नदी भारत की छठवीं सबसे लम्बी नदी के रूप में भी जानी जाती है। इसके अलावा संबलपुर में बने प्रसिद्ध हीराकुंड बांध के साथ ही गंगरेल व रूद्री नामक बांध भी इसी नदी पर बने हुए हैं।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

    महानदी भारत की अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक नदी है, जिसका उल्लेख हिन्दू ग्रंथों रामायण व महाभारत में भी देखने को मिलता है। प्राचीनकाल में इस नदी को चित्रोत्पला व नीलोत्पला नाम से भी जाना जाता था. नदी का इतिहास युगों पुराना है। रामायण काल में वनवास के दौरान भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ जिस दण्डकारण्य वन में रहते थे, वह छत्तीसगढ़ (तत्कालीन दक्षिण कोशल) के अंर्तगत आता था। दण्डकारण्य वन के समीप महानदी व गोदावरी नदी प्रवाहित होती थी। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है। अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया था। यहां की नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे। यह जंगल क्षेत्र था और दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर श्री राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था।

    छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में महानदी के किनारे ही सभ्यता का विकास हुआ। महानदी के रेत के नीचे हजारों साल का इतिहास दफन है। अरौद में महापाषाण काल का श्मशान घाट और महानदी के किनारे चट्टाननुमा बंदरगाह मिलने के बाद भी इस क्षेत्र की व्यापक खुदाई नहीं की गई। इसलिए जमींदोज हो चुकी प्राचीन सभ्यता के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पा रहा है। अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि धमतरी जिले की सभ्यता कितनी पुरानी है।

    जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर महानदी से लगा ग्राम अरौद है। पुरातात्विक महत्व के ग्राम लीलर, दरगहन और सलोनी भी महानदी तट पर इसी रोड में पड़ते हैं। इन गांवों में अब तक ज्ञात 3 हजार साल पुरानी सभ्यता का इतिहास दबा पड़ा है। महानदी किनारे अरौद के बंदरगाहनुमा चट्टान का निरीक्षण करने के बाद अधिकांश पुरातत्ववेत्ताओं और शोधकर्ताओं ने महानदी की रेत में बड़े-बड़े चट्टानों को देखकर इसे प्राचीन काल का छोटा बंदरगाह करार दिया था।

    उनका तर्क था कि यहां छोटे-छोटे नाव ठहरते थे। 3 हजार साल पहले महानदी उफान पर होती थी। उस समय यातायात के लिए जल मार्ग का उपयोग होता रहा होगा। कुछ पुरातत्वविदों का अनुमान था कि ये पत्थरनुमा चट्टान नहाने और कपड़ा धोने के पुराने घाट भी हो सकते हैं। ये बंदरगाह है या घाट, इसकी वास्तविकता जानने के लिए पुरातात्विक खुदाई जरूरी है। लेकिन पुरातत्व शोध हुए 5 साल बीत गए न खुदाई शुरू हुई और न ही पुरातत्व विभाग ने दोबारा इस क्षेत्र में कोई शोध किया।

    सहायक नदियां

    सिहासा ने निकलने के बाद महानदी अत्यन्त संक्षिप्त धारा के रूप में प्रवाहित होती है तथा पैरी और सोंढुर नदी जब इसमें आकर मिलती हैं, तब यह नदी महानदी के रूप में आती है. इसके बाद रायपुर के निकट शिवनाथ नदी से मिलने के बाद महानदी पूर्व दिशा की ओर मुड़ जाती है और संबलपुर के माध्यम से उड़ीसा राज्य में प्रवेश करती है. सिहावा से बंगाल की खाड़ी तक के सफर में महानदी विभिन्न जिलों से होकर गुजरती है. इस दौरान बांयी दिशा से सोढूंर, पैरी, शिवनाथ, अरपा व हसदेव नदी इसमें आकर मिलती हैं, वहीं दाहिनी दिशा से खारून, जोंक, सुरंगी व जमुनिया नदियां महानदी में समाहित होती हैं. यह नदी मुख्य रूप से रायपुर, बस्तर, बिलासपुर, कटक, चंपारण व संबलपुर में बहती है.

    महानदी के उपजाऊ मैदान

    यह पानी की क्षमता के मामले में देश की प्रमुख नदियों में से एक है और गोदावरी नदी के बाद दूसरे स्थान पर आती है। महानदी के मैदान बहुत उपजाऊ है और चावल की खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं। हर साल यह नदी न जानें कितने लोगों को अन्न जल प्रदान करती है। महानदी छत्तीसगढ़ के साथ ओडिशा के लिए भी कृषि के लिए उपजाऊ भूमि और जल प्रदान करती है। सिवनाथ नदी में शामिल होने के बाद, महानदी पूर्व दिशा में बहती है और अपनी आधी लंबाई की यात्रा के बाद उड़ीसा में प्रवेश करने से पहले हसदेव और जोंक नदियों से जुड़ जाती है।

    महानदी विवाद

    कावेरी नदी की भांति ही पूर्व में बहने वाली महानदी नदी के जल के बंटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ व उड़ीसा राज्य में विवाद जल रहा है। यह विवाद करीब 33 साल पुराना है, लेकिन 2016 में महानदी पर बनने वाले बांधों के चलते इस विवाद ने और अधिक तूल पकड़ लिया था। दरअसल महानदी पर सबसे बड़ा बांध हीराकुंड बांध है, जिस पर एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील बनी हुई है। यह बांध उड़ीसा में बना हुआ है।वहीं 2016 में छत्तीसगढ़ में महानदी पर बन रहे सात मंजिला बांध को लेकर उड़ीसा सरकार ने आपत्ति जतायी। उड़ीसा सरकार का मानना था कि, छत्तीसगढ़ के बांध बड़ी संख्या में जल अधिग्रहीत कर लेंगे, जिससे हीराकुंड बांध व उड़ीसा को कम पानी मिलेगा। जिसके तहत उड़ीसा सरकार ने तीन माह के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से नदी पर चल रहे प्रोजेक्ट्स को रोकने की अपील भी की थी। 

    छत्तीसगढ़ की गंगा

    महानदी को गंगा की ही तरह पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। हर साल हजारों लोग यहां स्नान करने पहुंचते हैं। गंगा के समान पवित्र होने के कारण महानदी के तट पर कई धार्मिक केंद्र स्थित हैं। महानदी पूर्व मध्य भारत की एक प्रमुख नदी है और छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों से होकर बहती है। अन्य सभी नदियों की तरह महानदी भी पूजनीय है। यह लोगों के जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है और सभी प्रमुख धार्मिक कार्यों और त्योहारों में मुख्य भूमिका निभाती है। महानदी का जल किसी भी अवसर के लिए शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि महानदी के पानी में बुरे को अच्छे में बदलने की शक्ति होती है। महानदी नदी का धार्मिक महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि इसके किनारे या तो बहुत सारे मंदिर हैं या आसपास के क्षेत्र में स्थित हैं। इसके भक्तों की सबसे ज्यादा संख्या कटक से है। भारत के अन्य हिस्सों के तीर्थयात्री भी इस नदी के तट पर स्थित विभिन्न मंदिरों के दर्शन हेतु आते हैं। इस नदी के आस-पास कुछ धार्मिक स्थल लक्ष्मण मंदिर, गंधेश्वर मंदिर, ओडिशा में स्थित हुमा का झुका हुआ मंदिर। भारत की प्रमुख नदियों में से एक महानदी वास्तव में अपनी विशेषताओं की वजह से छत्तीसगढ़ ही नहीं अन्य स्थानों की भी शान मानी जाती है जो सदियों से अपनी पवित्रता को बनाए हुए है।

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