तीजन बाई का जन्म 8 अगस्त, 1956 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के गनियारी गांव में हुआ था। वे एक परधान जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। तीजन बाई के पिता हुनुकलाल परधा और माता सुखवती थीं।
तीजन बाई बचपन से ही पंडवानी सुनने और देखने में रुचि रखती थीं। उनके नाना ब्रजलाल एक पंडवानी गायक थे। तीजन बाई ने अपने नाना से पंडवानी सीखी।
तीजन बाई ने 13 साल की उम्र में पहली बार पंडवानी का मंच प्रदर्शन किया। उस समय, महिलाओं को पंडवानी गाना मना था। लेकिन तीजन बाई ने इस परंपरा को तोड़ा और पंडवानी की पहली महिला गायिका बनीं।
तीजन बाई की शुरुआत
तीजन बाई बचपन से ही पंडवानी सुनने और देखने में रुचि रखती थीं। उनके नाना ब्रजलाल एक पंडवानी गायक थे। तीजन बाई उनके साथ अक्सर पंडवानी सुनने जाती थीं।
एक दिन, जब तीजन बाई 13 साल की थीं, तो उनके नाना ब्रजलाल बीमार पड़ गए। उन्होंने तीजन बाई से कहा कि वह उनकी जगह पंडवानी का प्रदर्शन करे। तीजन बाई ने नाना की बात मान ली और पंडवानी का प्रदर्शन किया।
तीजन बाई का प्रदर्शन बहुत ही प्रभावशाली था। लोगों को उनकी आवाज और गायन शैली बहुत पसंद आई। तीजन बाई ने तब से पंडवानी का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।
तीजन बाई की सफलता
तीजन बाई ने पंडवानी को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत और विदेशों में कई देशों में पंडवानी का प्रदर्शन किया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।
तीजन बाई को छत्तीसगढ़ की एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में माना जाता है। वे छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए एक प्रेरणा हैं।
तीजन बाई की विरासत
तीजन बाई की विरासत छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रेरणा है। उन्होंने पंडवानी को एक जीवित कला रूप के रूप में बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तीजन बाई की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है जो हमें दिखाती है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
तीजन बाई की कुछ उपलब्धियां
- पद्मश्री (1988)
- पद्मभूषण (2003)
- पद्म विभूषण (2016)
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1990)
- राष्ट्रीय लोक कला पुरस्कार (1993)
- छत्तीसगढ़ गौरव पुरस्कार (2005)
तीजन बाई का संदेश
तीजन बाई हमेशा कहते हैं कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने खुद भी इस बात को साबित किया है। वे एक आदिवासी परिवार से आती हैं, जहां महिलाओं को पंडवानी गाना मना था। लेकिन तीजन बाई ने इस परंपरा को तोड़ा और पंडवानी की पहली महिला गायिका बनीं।
तीजन बाई की कहानी हमें दिखाती है कि हम किसी भी परिस्थिति में अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, अगर हम कड़ी मेहनत करें और दृढ़ संकल्प रखें।
तीजन बाई की कुछ चुनौतियां
तीजन बाई ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। उन्होंने एक आदिवासी परिवार से आने वाली महिला के रूप में, पंडवानी गाने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उस समय, महिलाओं को पंडवानी गाना मना था। लेकिन तीजन बाई ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की और सफलता हासिल की।
तीजन बाई ने पंडवानी को एक जीवित कला रूप के रूप में बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने पंडवानी की परंपरा को आगे बढ़ाया है और इसे नए पीढ़ी के लिए परिचित कराया है।
तीजन बाई ने पंडवानी को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत और विदेशों में कई देशों में पंडवानी का प्रदर्शन किया है। उन्होंने पंडवानी को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कला रूप बनाया है।
तीजन बाई के प्रयासों के कारण, पंडवानी एक जीवित और जीवंत कला रूप बना हुआ है। यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
तीजन बाई की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है जो हमें दिखाती है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
तीजन बाई ने एक आदिवासी परिवार से आने वाली महिला के रूप में, कई चुनौतियों का सामना किया है। लेकिन उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की और सफलता हासिल की।
तीजन बाई की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हम अपनी परंपराओं और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए क्या कर सकते हैं। तीजन बाई ने पंडवानी को एक जीवित कला रूप के रूप में बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत की है। उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपनी परंपराओं और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कुछ कर सकते हैं।
तीजन बाई एक प्रेरणा हैं। वे हमें दिखाती हैं कि हम कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।