छत्तीसगढ़ में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के संगम पर बसा शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवे धाम की संज्ञा दी गई है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम या गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है।
शबरी और नारायण के अटूट प्रेम के कारण इस स्थान का नाम शिवरीनारायण पड़ा। आज भी लोग माता शबरी के राम के प्रति स्नेह को याद करते हुए सीता राम कहकर एक-दूसरे से अभिवादन करते हैं। मान्यता है कि माता शबरी भील राजा की पुत्री थीं। शबरी के विवाह में बारात में भेड़ बकरी का मांस परोसे जाने से नाराज होकर माता शबरी अपना घर छोड़कर राम भक्ति में लीन हो गई। इस स्थान में एक अक्षय कृष्ण वट है, जहां पत्ते में शबरी माता ने राम जी को अपने जूठे बेर खिलाए थे।
जांजगीर चांपा जिले के नवागढ़ ब्लॉक में महानदी, जोक नदी और शिवनाथ नदी के त्रिवेणी संगम में बसा शिवरीनारायण का धार्मिक महत्व आज भी है। तीन नदियों के संगम के कारण शिवरीनारायण को गुप्त प्रयाग भी कहते हैं। आस्था, प्रेम और विश्वास की नगरी को माता शबरी और राम चंद्र के जूठे बेर खिलाने से भी जोड़ कर देखा जाता है।
मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था। वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से गुजरे. सुकमा का रामाराम उनका अंतिम पड़ाव था। प्रभु राम ने वनवास काल के दौरान लगभग 2260 किलोमीटर की यात्रा की थी।
नर नारायण मंदिर की महिमा
धार्मिक नगरी शिवरीनारायण प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहां नर नारायण भगवान के मंदिर को बड़ा मंदिर के नाम से जाना जाता है। वहीं मंदिर के सामने माता शबरी का प्राचीन मंदिर विद्यमान है, जहां लोग आस्था के साथ आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दर्शन करते हैं। मठ मंदिर के मुख्तियार सुखराम दास जी बताते हैं कि, राम लक्ष्मण का वनवास का कुछ समय शिवरीनारायण में बीता है। इसी स्थान में माता शबरी ने अपने जूठे बेर राम चंद्र जी को खिलाए थे। यहां मंदिर के सामने अक्षय कृष्ण वट वृक्ष है, जिसका हर पत्ता दोना आकृति में बना है। मान्यता है कि, इसी दोने में माता शबरी ने अपने जूठे बेर राम चंद्र जी को खिलाए थे।
कौन थी माता शबरी?
माता शबरी वस्तुतः भील राजा शबर की कन्या थीं। कथा है कि भील राजा ने शबरी के विवाह के लिए भव्य आयोजन किया। विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए थे। उन्हें देखकर शबरी विचलित हो गईं कि उनके हिस्से ये कैसी खुशी जिसके लिए इन बेजुबान प्राणियों को बलि पर चढ़ना पड़ रहा है। उनका हृदय पिघल गया और मन ने दृढ़निश्चय कर लिया कि ऐसा विवाह उन्हें नहीं चाहिए। वे घर से भाग निकलीं।
द्वापर से त्रेता तक शबरी ने की प्रतीक्षा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने जिस कुबड़ी महिला को मथुरा में सुंदरी कहकर आवाज लगाई थी और उसे कुबड़ से मुक्ति दिलाई थी। उसी देव कन्या ने अपना प्रेम प्रकट करने के लिए कृष्ण जी से फिर मिलने की इच्छा जताई थी। जिसे भगवान कृष्ण ने राम अवतार में मिलने का वादा किया था। त्रेता युग में माता शबरी अपने अंत काल तक राम का इंतजार करती रही और राम वन गमन में माता शबरी ने अपने जूठे बेर खिलाए। राम के प्रति माता शबरी की आस्था, राम के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव राम के आने का विश्वास और इंतजार आज भी यहां देखा जाता है।
जगन्नाथपुरी धाम है शिवरीनारायण
हर युग में शिवरीनारायण नगर का अस्तित्व रहा है। यह नगर मातंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और माता शबरी की साधना स्थली भी रही है। यह महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम के तट पर स्थित प्राचीन नगर है। शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है जो छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी धाम के नाम से विख्यात है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा है. प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।
कैसा है माता शबरी का आश्रम
माता शबरी का आश्रम शिवरीनारायण के विशाल मंदिर परिसर में स्थित है। पुजारी बताते हैं कि कथानुसार शबरी का प्राचीन मंदिर छैमासी रात में बना था। सुबह हो जाने पर एक तरफ का हिस्सा अधूरा रह गया।शेष मंदिर में अद्वितीय नक्काशी की गई है।