दाऊ दुलार सिंह मंदराजी, जिन्हें प्यार से ‘दाऊ मंदराजी’ के नाम से जाना जाता है, छत्तीसगढ़ के एक ऐसे लोक कलाकार थे जिन्होंने अपनी कला और समर्पण से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊँचाई दी। उन्हें छत्तीसगढ़ में ‘नाचा’ नामक लोक कला के पुनर्जीवन और लोकप्रियता का श्रेय दिया जाता है। वे न केवल एक कलाकार थे, बल्कि एक गुरु, एक निर्देशक, और सबसे बढ़कर, छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के सच्चे उपासक थे।
प्रारंभिक जीवन और कला की ओर रुझान:
दाऊ मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को राजनांदगांव जिले के रवेली गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री जगतपाल सिंह था। बचपन से ही दाऊ मंदराजी की रुचि लोक कला में रमी हुई थी। ग्रामीण परिवेश और वहां के लोक नाटकों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने कम उम्र में ही नाचा सीखना शुरू कर दिया। उनकी लगन और प्रतिभा देखकर उनके गुरुओं ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने चिकारा, हारमोनियम और तबला जैसे वाद्य यंत्र बजाना भी सीखा, जिससे उनकी कला और भी निखरी।
नाचा को नई दिशा:
दाऊ मंदराजी ने अपने जीवन में कई नाचा मंडलियों की स्थापना की। इन मंडलियों के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोक कला को बढ़ावा दिया और उसे एक नई पहचान दी। उन्होंने नाचा को केवल मनोरंजन का साधन नहीं समझा, बल्कि इसे सामाजिक संदेशों, देशभक्ति के विचारों और जन-जागरण के लिए एक सशक्त माध्यम बनाया। उनके नाटकों में अक्सर सामाजिक बुराइयों पर कटाक्ष, राष्ट्रीय भावना का प्रसार और शिक्षा के महत्व को दर्शाया जाता था। उन्होंने नाचा की पारंपरिक शैली को बरकरार रखते हुए उसमें नए तत्वों का समावेश किया, जिससे यह कला और भी आकर्षक और प्रासंगिक बनी।
कला और व्यक्तित्व:
दाऊ मंदराजी का व्यक्तित्व अत्यंत सरल और सहज था। वे अपने शिष्यों के प्रति हमेशा स्नेहिल और मार्गदर्शक रहे। उन्होंने कई युवा कलाकारों को नाचा की कला सिखाई और उन्हें मंच प्रदान किया। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उनके नाटकों को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। उनकी कला में छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू और लोक जीवन की जीवंतता झलकती थी।
सम्मान और विरासत:
दाऊ मंदराजी को छत्तीसगढ़ की लोक कला में उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1982 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च कला पुरस्कार है। इसके अलावा, उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तुलसी सम्मान भी प्रदान किया गया। उनकी मृत्यु 24 सितंबर, 1994 को हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी स्मृति में ‘दाऊ दुलार सिंह मंदराजी स्मृति पुरस्कार’ की स्थापना की है, जो लोक कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले कलाकारों को प्रदान किया जाता है।
दाऊ दुलार सिंह मंदराजी को छत्तीसगढ़ की लोक कला के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने नाचा को एक नई पहचान दी और उसे छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बना दिया। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। वे सही मायने में छत्तीसगढ़ की लोक कला के पुनरुद्धारक थे।