छत्तीसगढ़, भारत का हृदय स्थल, न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है, बल्कि यह प्राचीन मंदिरों और समृद्ध आध्यात्मिक विरासत का भी घर है। भगवान शिव के कई प्राचीन और पूजनीय मंदिर इस राज्य में स्थित हैं, जो भक्तों और इतिहासकारों दोनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ये मंदिर वास्तुकला, इतिहास और धार्मिक महत्व का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। आइए, छत्तीसगढ़ के कुछ महत्वपूर्ण शिव मंदिरों पर एक नज़र डालते हैं।
प्रसिद्ध शिव मंदिर
1. भोरमदेव मंदिर (कबीरधाम जिला): छत्तीसगढ़ का खजुराहो
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में मैकाल पर्वत श्रृंखला की सुरम्य वादियों के बीच स्थित भोरमदेव मंदिर को अक्सर ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपालदेव द्वारा बनवाया गया था। मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण कामुक और धार्मिक मूर्तियां खजुराहो की याद दिलाती हैं, लेकिन इसकी अपनी एक विशिष्ट पहचान है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसके परिसर में एक विष्णु मंदिर और एक जैन मंदिर भी है, जो धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है। भोरमदेव का शांत वातावरण और ऐतिहासिक महत्व इसे एक प्रमुख पर्यटन और तीर्थ स्थल बनाता है।
2. कपिलेश्वर मंदिर (राजिम, गरियाबंद जिला): राजीव लोचन के समीप
राजिम, जिसे ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’ कहा जाता है, महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के संगम पर स्थित है। यहाँ का कपिलेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण स्थल है। यद्यपि राजिम मुख्य रूप से अपने राजीव लोचन मंदिर (भगवान विष्णु को समर्पित) के लिए प्रसिद्ध है, कपिलेश्वर मंदिर भी स्थानीय भक्तों के लिए अत्यधिक पूजनीय है। महाशिवरात्रि और अन्य शिव पर्वों के दौरान यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
3. पातालेश्वर महादेव मंदिर (बिलासपुर जिला): शिवनाथ नदी के तट पर
बिलासपुर जिले में स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर एक और महत्वपूर्ण शिव मंदिर है। यह मंदिर शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है, जो इसे एक शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है। माना जाता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है और यहाँ भगवान शिव के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
4. शिव मंदिर, आरंग (रायपुर जिला): प्राचीन कला का नमूना
रायपुर जिले में स्थित आरंग शहर, अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। यहाँ कई छोटे-बड़े शिव मंदिर स्थित हैं, जो कल्चुरी काल की वास्तुकला और मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। आरंग के शिव मंदिर अपनी सादगी और ऐतिहासिक महत्व के लिए उल्लेखनीय हैं।
5. केदारनाथ मंदिर, सिहावा (धमतरी जिला): ऋषि श्रृंगी की तपोभूमि के समीप
धमतरी जिले में स्थित सिहावा नगरी, ऋषि श्रृंगी की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पास में एक केदारनाथ मंदिर भी स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। हालांकि यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर जैसा विशाल नहीं है, लेकिन इसकी अपनी एक स्थानीय मान्यता और आध्यात्मिक महत्व है, खासकर उन भक्तों के लिए जो इस क्षेत्र में आते हैं।
6. कुलेश्वर महादेव मंदिर (राजिम, गरियाबंद जिला): नदियों के संगम पर
कुलेश्वर महादेव मंदिर राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के संगम पर स्थित है। यह एक प्राचीन और अत्यंत पूजनीय शिव मंदिर है। यह मंदिर एक छोटे से द्वीप पर स्थित है और नदी के बीच में इसकी उपस्थिति इसे एक अनूठा और मनमोहक दृश्य प्रदान करती है। राजिम कुंभ के दौरान इस मंदिर का विशेष महत्व होता है।
7. महादेव घाट (रायपुर): खारुन नदी के तट पर
रायपुर शहर में खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट एक लोकप्रिय धार्मिक और पर्यटन स्थल है। यहाँ एक विशाल शिव मंदिर और भगवान शिव की भव्य प्रतिमा स्थापित है। यह स्थान अपनी शांति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहाँ शाम को आरती के दौरान एक विशेष आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है। यहाँ हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक बड़ा मेला भी लगता है।
8. देवबलोदा शिव मंदिर (दुर्ग जिला): नागवंशी शासनकाल की देन
दुर्ग जिले के पास देवबलोदा में स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर 12वीं शताब्दी का माना जाता है, जो नागवंशी शासनकाल में बनाया गया था। इसकी वास्तुकला और मूर्तिकला उस काल की उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाती है। मंदिर का शांत वातावरण और ऐतिहासिक महत्व इसे दर्शनार्थियों के लिए एक विशेष स्थान बनाता है।
9. गोबरहिन गढ़ धनोरा (केशकाल, कोंडागांव जिला): कर्ण की राजधानी और शिव मंदिरों का समूह
कोंडागांव जिले के केशकाल में स्थित गोबरहिन गढ़ धनोरा एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। धनोरा को पौराणिक रूप से कर्ण की राजधानी भी कहा जाता है। यहाँ 5वीं-6वीं शताब्दी के प्राचीन मंदिर, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और एक बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) भी प्राप्त हुई है। केशकाल टीलों की खुदाई के दौरान यहाँ अनेक शिव मंदिर मिले हैं। एक टीले पर कई शिवलिंग मौजूद हैं, जो गोबरहिन के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर एक विशाल मेला लगता है, जो दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करता है।
इसी तरह, केशकाल की पवित्र पुरातात्विक भूमि में कई ऐसे स्थल हैं जो न केवल प्राचीन इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि श्रद्धा और आस्था के अद्भुत केंद्र भी हैं। इनमें नारना में अद्भुत शिवलिंग और पिपरा के जोड़ा शिवलिंग की विशेष मान्यता है, जो स्थानीय भक्तों के लिए आस्था के प्रमुख केंद्र हैं।
10. ढोलकल शिव मंदिर (दंतेवाड़ा जिला): गणेश प्रतिमा के पास शिव का वास
दंतेवाड़ा जिले में, बैलाडीला की पहाड़ियों पर स्थित ढोलकल शिव मंदिर एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर एक दुर्गम स्थान पर स्थित है। यहाँ 11वीं शताब्दी की भगवान गणेश की एक विशाल और दुर्लभ प्रतिमा है। इस गणेश प्रतिमा के ठीक सामने भगवान शिव का एक छोटा मंदिर है, जिसके कारण यह माना जाता है कि शिव और गणेश यहाँ एक साथ विराजते हैं। ढोलकल का नाम यहाँ स्थित विशाल ढोल के आकार की चट्टान से पड़ा है। यहाँ तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति का अनुभव इसे एक अविस्मरणीय यात्रा बनाता है।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ के शिव मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि ये राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के संरक्षक भी हैं। ये मंदिर न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। इन मंदिरों की यात्रा छत्तीसगढ़ की आत्मा को समझने और उसके आध्यात्मिक गौरव का अनुभव करने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती है।