Author: हमर गोठ

दंतेवाड़ा जिले के जगदलपुर से लगभग 75 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में, इंद्रावती नदी के तट पर बसा बारसूर का गाँव एक समय हिंदू सभ्यता का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। माना जाता है कि यहाँ कभी 147 मंदिर और उतनी ही तालाब हुआ करते थे। 10वीं और 11वीं शताब्दी के इन मंदिरों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं, जो कि एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराने हैं। इनमें भगवान विष्णु की कुछ बेहद खूबसूरत मूर्तियां भी शामिल हैं। एक शिव मंदिर में 12 नक्काशीदार पत्थर के खंभों के बाहरी हिस्से पर नग्न मूर्तियां बनी हुई हैं। एक अन्य…

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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में स्थित एक अत्यंत प्राचीन धार्मिक स्थल है, जिसे हम राजबेड़ा मंदिर के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में भगवान गणेश और मां दुर्गा की एक अद्वितीय प्रतिमा स्थित है, जहां भगवान गणेश मूशक पर आसीन हैं। इस प्रतिमा में एक अद्वितीय सौंदर्य, आकर्षण, और दिव्यता की कला है, जो ग्रामीण समुदाय के लिए आध्यात्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह स्थान दो ग्राम पंचायतों, छिनारी और बैलापाड़, के पास स्थित है और यह कहा जाता है कि यहां की प्रतिमाएं लगभग 100 वर्ष पहले प्रकट हुई थीं। स्थानीय लोग कहते हैं कि इस…

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भीषण गर्मी की दुपहर में, जब छत्तीसगढ़ के जंगल पसीने से तर-बतर होते हैं, तब जमीन से एक हरी खुशबू उठती है. ये है चरोटा, एक जंगली साग, जो किसी राजकुमारी की हरी पोशाक की तरह सूरज की किरणों में झिलमिलाता है. इसी चरोटा से बनती है वो सब्ज़ी, जिसके स्वाद में जंगल की ज़िंदगी और ज़मीन की ताज़गी घुलती है – चरोटा भाजी. इस सब्ज़ी की कहानी किसी ज़रूरतमंद राजकुमारी की तरह नहीं है, जो किसी शाप से मुक्त होने के लिए बनाई जाती है. ये ज़रूरतमंदों की कहानी है, जिन्होंने जंगल के खज़ाने को अपनी थाली तक पहुंचाया.…

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शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की एक प्रमुख नदी है। यह नदी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के गोडरी गांव से निकलती है और लगभग 470 किलोमीटर की यात्रा तय करके छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में महानदी में मिल जाती है। शिवनाथ नदी के उद्गम के बारे में एक लोककथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार एक आदिवासी लड़का शिवनाथ नाम का भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक दिन, एक किसान ने शिवनाथ को देखा और उसे अपनी बेटी से शादी करने के लिए कहा। शिवनाथ ने किसान के घर जाकर उसकी सेवा की और तीन साल…

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तीजन बाई का जन्म 8 अगस्त, 1956 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के गनियारी गांव में हुआ था। वे एक परधान जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। तीजन बाई के पिता हुनुकलाल परधा और माता सुखवती थीं। तीजन बाई बचपन से ही पंडवानी सुनने और देखने में रुचि रखती थीं। उनके नाना ब्रजलाल एक पंडवानी गायक थे। तीजन बाई ने अपने नाना से पंडवानी सीखी। तीजन बाई ने 13 साल की उम्र में पहली बार पंडवानी का मंच प्रदर्शन किया। उस समय, महिलाओं को पंडवानी गाना मना था। लेकिन तीजन बाई ने इस परंपरा को तोड़ा और पंडवानी की पहली महिला…

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छत्तीसगढ़ का चेंदरू, जिसे “बस्तर का मोगली” के नाम से भी जाना जाता है, एक आदिवासी लड़का था जिसने एक बाघ शावक को पाला और उसे अपने साथ ही रखा। चेंदरू का जन्म 1935 में नारायणपुर जिले के गढ़बंगाल गांव में हुआ था। वह एक मुरिया जनजाति का सदस्य था। जब चेंदरू 10 साल का था, तो उसने एक बाघ शावक को जंगल में घायल पाया। चेंदरू ने शावक को अपने घर ले आया और उसे “टैंबु” नाम दिया। चेंदरू और टेम्बू एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वे अक्सर जंगल में एक साथ खेलते थे। चेंदरू और टेम्बू…

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श्री राम की शिक्षाएं और कहानियां छत्तीसगढ़ी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे छत्तीसगढ़ी लोगों के जीवन और मूल्यों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नैतिकता और कर्तव्य श्री राम की शिक्षाओं ने छत्तीसगढ़ी लोगों को नैतिकता और कर्तव्य के महत्व के बारे में सिखाया है। वे लोगों को सत्य बोलने, अपने दायित्वों को पूरा करने और दूसरों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए, श्री राम ने अपने पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करने के लिए वनवास जाना स्वीकार किया, भले ही इससे उन्हें अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण से…

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राम नामी समाज का इतिहास 15वीं शताब्दी में शुरू होता है। कहा जाता है कि इस संप्रदाय की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। परशुराम एक हिंदू देवता हैं जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। राम नामी समाज के अनुयायियों का मानना है कि परशुराम ने उन्हें राम नाम का महत्व बताया था। राम नामी समाज के इतिहास के बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस संप्रदाय की स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी, जबकि अन्य का मानना है कि यह संप्रदाय इससे भी पहले अस्तित्व में था। राम नामी समाज…

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बस्तर अंचल का हस्तशिल्प, चाहे वे आदिवासी हस्तशिल्प हों या लोक हस्तशिल्प, दुनिया-भर के कलाप्रेमियों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम रहा हैं। बस्तर शिल्प की दीवार दुनिया भर में कला उत्साही और विशेषज्ञ का ध्यान आकर्षित करते हैं। बस्तर हस्तशिल्प की विशेषताएं बस्तर हस्तशिल्प की अपनी विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य हस्तशिल्पों से अलग करती हैं। इन विशेषताओं में शामिल हैं: बस्तर हस्तशिल्प के प्रकार बस्तर हस्तशिल्प को कई प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं: बस्तर हस्तशिल्प का महत्व बस्तर हस्तशिल्प का सांस्कृतिक, आर्थिक और कलात्मक महत्व है। यह आदिवासी संस्कृति को संरक्षित रखने और…

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छत्तीसगढ़ की धरती इतिहास के अनछुए अध्यायों और प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों को अपने सीने में समेटे हुए है। इसी अनमोल विरासत का एक अलंकृत अध्याय है रायपुर जिले का ताला का पुरातात्विक क्षेत्र। महानदी नदी के तट पर बसा यह प्राचीन नगर हमें अतीत के सुनहरे पन्नों से रूबरू कराता है, जहां कला, संस्कृति और सभ्यता के शानदार अवशेष इतिहास के गवाह बनकर खड़े हैं। प्राचीनता का सफर: पुरातात्विक उत्खनन से पता चलता है कि ताला की धरती कम से कम 2000 वर्ष ईसा पूर्व से आबाद थी। यहां मिले अवशेष मौर्य, शुंग, सतवाहन, कुषाण और गुप्त काल के…

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