मानसून आते ही उमस और बादल की गर्जनाओं के साथ ही बस्तर में लोगो के चेहरों पर एक अलग ही खुशी नजर आती है। इस विशेष तरह की खुशी का कारण है एक सब्जी। यह सब्जी है बोड़ा की। बोड़ा को खाने के लिये लोग साल भर इंतजार करते है। बोड़ा से बोड़ा प्रेमी को खाने की खुशी और बेचने वाले को पैसे की खुशी मिल जाती है।
बस्तर के सरई बोड़ा के बारे में आपने बहुत सुना होगा, छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग इसका स्वाद भी ले चुके होंगे। साल को छत्तीसगढ़ में सरई कहा जाता है। जबकि बोड़ा स्थानीय आदिवासियों का दिया हुआ नाम है। इसलिए बोड़ा को सरई बोड़ा भी कहा जाता है। बोड़ा की खोज भी आदिवासियों की ही है। वनोपज पर निर्भरता के कारण वनवासी यहां पैदा होने वाले हर खाद्य पदार्थ के बारे में जानते हैं। बोड़ा भी उन्ही में से एक है। बस्तर को सालवनों का द्वीप कहा जाता है। साल के अधिकतर वृक्ष कोंडागांव क्षेत्र में ज्यादा है इसलिये कोंडागांव में बोड़ा की आवक सबसे ज्यादा होती है। बोड़ा खाने वालों के अनुसार बोड़ा दो किस्म का होता है जात बोड़ा और राखड़ी बोड़ा, जिसमें से जात बोड़ा ज्यादा स्वादिष्ट होता है।
बोड़ा साल वृक्षों के नीचे ही निकलता है. जब पहली बारिश के बाद का उमस का वातावरण हो जाता है, उस समय बोड़ा स्वत: जमीन के अंदर आकार लेता है। स्थानीय ग्रामीण धरती को खुरेदकर बोड़ा निकालते है। बोड़ा आकार में आलू से लगभग आधा या उससे भी छोटा होता है। यह भूरे रंग का होता है और उपर पतली सी परत एवं अंदर सफेद गुदा भरा होता है। इसकी सब्जी काफी स्वादिष्ट और जायकेदार बनती है।मिटटी के नीचे होने के कारण इसमें काफी मिट्टी लगी होती है। इसे उपयोग में लाने से पहले इसकी काफी सफाई की जाती है ताकि मिट्टी की वजह से सब्जी का जायका ना बिगड़े। चार से पांच बार पानी से धोकर ही इसे उपयोग में लाया जाता है।
बोड़ा दरअसल एक फंगस है। वैज्ञानिकों ने इसका बॉटिनिकल नाम शोरिया रोबुस्टा रखा है। बोड़ा में आवश्यक खनिज लवण एवं कार्बोहाईड्रेट भरपूर मात्रा में होता है। सैल्यूलोज व कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होने की वजह से शुगर व हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) वालों के लिए यह रामबाण है। इसे खाने से उन्हें कोई नुकसान नहीं होता। आमतौर पर यह बटन मशरूम की तरह दिखता है। इसकी सब्जी बेहद ही स्वादिष्ट होती है। बाजार में आते ही लोग इसे खरीदने के लिये टूट पड़ते है। इसकी आवक सिर्फ शुरूआती बरसात तक लगभग एक माह तक ही होती है। इसकी शुरुआती कीमत किसी का भी होश उड़ा देती है। शुरूआती दौर में यह बोड़ा 2000 रू किलो तक बिकता है। बाद में अधिक आवक से इसकी कीमत दौ सौ से तीन सौ रू किलो तक हो जाती है।वैसे इसे छत्तीसगढ़ का काला सोना भी कहा जाता है।