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Author: हमर गोठ
भारत के इतिहास में कलचुरी राजवंश स्थान महत्वपूर्ण है 550 से लेकर 1750 तक लगभग 12 सौ वर्षो की अवधि में कलचुरी नरेश उत्तर अथवा दक्षिण भारत में किसी ना किसी प्रदेश पर राज्य करते रहे शायद ही किसी राजवंश ने इतने लंबे समय तक राज्य किया होगा। कलचुरी वंश का मूल पुरुष कृष्णराज था जिसने इस वंश की स्थापना की और 500 से लेकर 575 ईसवी तक राज्य किया कृष्ण राज्य के बाद उसका पुत्र शंकरगंन प्रथम ने 575 से 600 ईसवी तक और शंकरगन के बाद उसका पुत्र बुधराज ने 600 से 620 ईसवी तक शासन किया किंतु…
छत्तीसगढ़ के इतिहास में मौर्यकाल का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसी वंश के सम्राट चन्द्रगुप्त को भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट होने का गौरव प्राप्त है। चन्द्रगुप्त के पश्चात उसका पुत्र बिंदुसार सिंहासन पर बैठा, उसने अपने राज्य की सीमा दक्षिण की ओर बढ़ाई। जब उसका पुत्र अशोक ई. पू. 272 में गद्दी पर बैठा तब राज्य की सीमा मद्रास तक पहुंच गई थी। उड़ीसा के प्रान्त कलिंग को भी अशोक ने जीत लिया। कलिंग देश महानदी और गोदावरी के बीच बंगाल की खाड़ी के किनारे का प्रदेश था, जिसमें कुछ भाग छत्तीसगढ़ का आ जाता था। इससे यह सिद्ध…
बस्तर में जब सब्जियों की बात होती है तो पहले जंगलों की सब्जियों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। यहाँ जंगलों में बहुत से ऐसे पौधे हैं जिन्हे सब्जियों के रूप में अपने आहार में लिया जाता है। इन पौधों में से एक है बास्ता। यह बांस का अंकुरित पौधा होता है जिसे यहाँ के लोग बड़े ही चाव से सब्जी बनाकर खाते हैं। इसे करील नाम से भी बोला जाता है।बांस के ये नए पौधे (बास्ता) जो की सफेद रंग के होते हैं ये हर साल जून से अगस्त के महीनों के बीच में आते हैं ।बांस करील बांस की…
छत्तीसगढ़ का सबसे लजीज, खास और स्वादिष्ट पकवानों में सबसे प्रिय चीला है। टमाटर की चटनी के साथ जब यह जीभ पर आता है तो मन को रंगीला बना देता है। सर्दी का मौसम आते ही घर के साथ होटल, रेस्टोरेंट में प्लेट सज जाते हैं। गुनगुनी धूप में इसका आनंद कई गुना बढ़ जाता है। नए चावल के चीला का स्वाद और भी मजेदार रहता है। चीला चावल आटे के साथ अब 36 प्रकार के बनने लगे हैं। चीला के साथ टमाटर की स्पेशल चटनी भी परोसी जाती है। राज्य के अन्य व्यंजनों की तुलना में चीला सबसे प्रमुख…
पौष्टिकता से भरपूर, कई रोगों में कारगर बोरे-बासी की चर्चा इन दिनों देशभर में हो रही है। वैसे बोरे-बासी एक छत्तीसगढ़ी व्यंजन है, लेकिन भारत के अन्य हिस्सों में भी इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आज हम आपको बता रहे हैं बोरे-बासी क्या है, इसे और क्या कहते, कैसे बनाया जाता, इसके क्या फयदे हैं। बोरे-बासी क्या है? वैसे तो बोरे-बासी Bore Basi दो शब्द हैं, लेकिन इसे एक ही व्यंजन के लिए उपयोग किया जाता है। गर्मियों के मौसम में छत्तीसगढ़ के मजदूर, किसान और आम नगरिक भी इसका उपयोग करते हैं। मना जाता है कि बोरे-बासी खाने से…
छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य की विधाओं में लोकगाथाओं का प्रमुख स्थान है, गाथाओं का रचना काल 1100 से 1500 तक माना गया है, अतः छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं में मध्य युगीन स्थितियों का ही चित्रण मिलता है, इससे वर्णित घटनाओं के आधार पर ही इतिहासकारों ने छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का निर्माण काल मध्ययुग माना है, इसी काल में अनेक छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं की रचना हुई तथा आज भी ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से चली आ रही है। लोक गाथाओं की प्रवृत्ति एवं विषय की दृष्टि से डा. नरेन्द्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का 3 भागों में वर्गीकारण किया है- प्रेम प्रधान गाथाएं, धार्मिक एवं पौराणिक…
छत्तीसगढ़ के मैनपाट में बहुत से पर्यटन स्थल है उनमें से एक टाइगर पॉइंट भी है। बारिश के मौसम में इसकी सुंदरता देखने के लिए दूर दूर से लोग यहाँ आते है। परिवार के साथ पिकनिक मनाने का यह उत्तम जगह है। आइये मैनपाट के इस जलप्रपात के बारे में जानते हैं। इसे टाइगर प्वाइंट जलप्रपात इस लिए कहा जाता है क्योकि जब झरने ऊपर से जमीन ओर गिरता है तो यहा पर टाइगर की दहाड़ की की ध्वनि सुनाई पड़ती है इस लिए टाइगर प्वाइंट ( मैनपाट ) कहा जाता |इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है । टाइगर प्वाइंट जलप्रपात…
कुटुमसर को शुरू में गोपांसर गुफा (गोपन = छुपा) नाम दिया गया था, लेकिन वर्तमान नाम कुटुमसर अधिक लोकप्रिय हो गया क्योंकि गुफा ‘कोटसर’ नामक गांव के पास स्थित है। कुटुमसर गुफा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के पास स्थित है। कुटुमसर गुफा पर्यावरणीय पर्यटनमें रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यह कोलेब नदी की एक सहायक नदी केगर नदी के किनारे स्थित केंजर चूना पत्थर बेल्ट पर गठित एक चूना पत्थर गुफा है। कुटुमसर की गुफा जमीन से 55 फुट नीचे हैं। इनकी लंबाई 330 मीटर है। इस गुफा के भीतर कई पूर्ण विकसित कक्ष हैं…
भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न कलाओं व संस्कृतियों का मिश्रण देखने को मिलता है। सभी प्रकार की कलाएँ किसी-न-किसी रूप में इतिहास से जुडक़र अपनी गौरवशाली गाथा का बखान करती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की ढोकरा कला भी इन्हीं कलाओं में से एक है। इस कला का दूसरा नाम घढ़वा कला भी है। यह कला प्राचीन होने के साथ-साथ असाधारण भी है। छत्तीसगढ़ की ढोकरा कला को सन 2014 से ज्योग्राफिकल इंडिकेटर यानि भौगोलिक संकेतक जिसे जीआई टैग कहते हैं, प्राप्त है। जी आई टैग किसी भी रीजन के क्षेत्रीय उत्पाद को एक विशेष पहचान देता है।…
भारत वर्ष के अति प्राचीनतम क्षेत्रों में सर्वोपरि दक्षिण कोसल, जो वर्तमान छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी उड़ीसा कहलाता है। छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का ‘कोशल’ प्रदेश, कालान्तर में ‘उत्तर कोशल’ और ‘दक्षिण कोशल’ नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का ‘दक्षिण कोशल’ वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में ‘चित्रोत्पला’ था) का मत्स्य पुराण :”मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च। तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।” मत्स्यपुराण – भारतवर्ष वर्णन – 50/25) महाभारत[ के…