उन दिनों सोनाखान एक रियासत के रूप में जानी जाती थी। जो आजकल छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में आता है। जहां के बिंझवार जमीदार परिवार में वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में हुआ था। बचपन से ही वीर नारायण सिंह को वीरता देशभक्ति और निडरता अपने पिता से विरासत में मिली थी। बचपन से ही वह धनुष बाण, मल्लयुद्ध, तलवारबाजी, घुड़सवारी और बंदूक चलाने में महारत हासिल कर चुके थे। अंग्रेज उनके शौर्य से डरे हुए थे।
नारायण सिंह से वीर नारायण सिंह बनने की कहानी
दरअसल वर्तमान छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के सोनाखान इलाके के एक बड़े जमींदार वीर नारायण सिंह थे। नारायण सिंह बिंझवार की कहानी काफी दिलचस्प है. 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजी सेना छत्तीसगढ़ में अपना कब्जा जमाना चाहती थी। तब नारायण सिंह के पिता रामराय सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद जब नारायण सिंह जमींदार बने उसी समय सोनाखान क्षेत्र में अकाल पड़ा. ये 1856 का समय था जब एक साल नहीं लगातार तीन साल तक लोगों को अकाल का सामना करना पड़ा। इससे इंसान तो इंसान जानवर भी दाने-दाने के लिए तरस गए।
कहा जाता था गरीबों का मसीहा
इतिहासकार बताते है कि सोनाखान इलाके में एक माखन नाम का व्यापारी था. जिसके पास अनाज का बड़ा भंडार था. इस अकाल के समय माखन ने किसानों को उधार में अनाज देने की मांग को ठुकरा दिया. तब ग्रामीणों ने नारायण सिंह से गुहार लगाई और जमींदार नारायण सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने व्यापारी माखन के अनाज भण्डार के ताले तोड़ दिये. नारायण सिंह ने गोदामों से उतना ही अनाज निकाला जितना भूख से पीड़ित किसानों के लिये आवश्यक था. इस लूट की शिकायत व्यापारी माखन ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर से कर दी. उस समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखन के जमींदार नारायण सिंह के खिलाफ वारन्ट जारी कर दिया और नारायण सिंह को सम्बलपुर से 24 अक्टूबर 1856 में बन्दी बना लिया गया. कमिश्नर ने नारायण सिंह पर चोरी और डकैती का मामाला दर्ज किया था.
अंग्रेजों ने वीर नारायण सिह को रायपुर के जेल में किया था बंद
शहीद वीर नारायण सिंह की शिकायत जब साहूकारों ने ब्रिटिश सरकार से की तो अंग्रेजों उनसे बदला लेने की कोशिश करने लगे। वीर नारायण सिंह की शिकायत मिलते ही डिप्टी कमिश्नर इलियट ने उस क्षेत्र को सैनिक छावनी में तब्दील कर दिया। 24 अक्टूबर 1856 में शहीद वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर लूट चोरी और हत्या जैसे मुकदमे चलाने के लिए रायपुर जेल में बंद कर दिया गया।
संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से जेल से भागे नारायण सिंह
सोनाखान के किसान अपने नेता को जेल में में देखकर दुःखी थे, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था पर उसी समय देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. इस अवसर का फायदा उठाकर संबलपुर के राजा सुरेन्द्रसाय की मदद से किसानों ने नारायण सिंह को रायपुर जेल से भगाने की योजना बनाई और इस योजना में सफल हुये. अब अंग्रेज इस घटना से आग बबूला हो गए और नारायण सिंह की गिरफ्तारी के लिए एक बड़ी सेना भेज दी.
1857 की क्रांति की आग पहुंच गई थी छत्तीसगढ़
बताया जाता है कि 1857 की क्रांति पूरे देश में आग की तरह फैल गई थी। जिसकी आंच छत्तीसगढ़ तक पहुंच चुकी थी। इस आग में कई भारतीयों ने हिस्सा लिया था उस वक्त शहीद वीर नारायण सिंह रायपुर की जेल में बंद थे। 1857 की क्रांति के दौरान उनके साथ जेल के कुछ सैनिक भी जुड़ गए जिन्होंने जेल से भागने में उनकी मदद की। जेल से भागने के बाद वीर नारायण सिंह ने केवल 500 सैनिकों की टुकड़ी के साथ सोनाखान में स्वतंत्रता दिला दी।
1 दिसंबर 1857 को वीर शहीद नारायण सिंह ने अंग्रेजों पर धावा बोल दिया जिसमें उन्होंने कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद घायल अंग्रेजों ने गोले बारूद के साथ सोनाखान ने हमला कर दिया। वीर नारायण सिंह को चारों तरफ से घेर लिया था। जिसमें वीर नारायण सिंह घायल हो गए थे। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को पकड़ने के लिए पूरे गांव को आग लगा दिया था। लेकिन ग्रामीणों की जान बचाने के लिए उन्होंने खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया।
फांसी की सजा
10 दिसंबर, 1857 को शहीद वीर नारायण सिंह पर मुकदमा चलाते हुए उन्हें मौत की सजा दी गई। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी देने के बाद उनके शव को रायपुर के जय स्तंभ चौराहे पर बांधकर तोप से उड़ा दिया। शहीद वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे वीर थे जिन्होंने आजादी के लिए कुर्बानी दी थी। शहीद वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वातंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा भी प्राप्त है। 1987 में इनकी 130वीं बरसी पर भारत सरकार ने 60 पैसे का डाक टिकट भी जारी किया था। आदिवासी उत्थान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान भी देती है।