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    Home»इतिहास»छत्तीसगढ़ में सोमवंशी राजवंश: स्वर्णिम युग का सूर्योदय (750 ईस्वी – 1200 ईस्वी)
    इतिहास

    छत्तीसगढ़ में सोमवंशी राजवंश: स्वर्णिम युग का सूर्योदय (750 ईस्वी – 1200 ईस्वी)

    हमर गोठBy हमर गोठDecember 9, 20233 Mins Read
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    Somavanshi Dynasty in Chhattisgarh
    Somavanshi Dynasty in Chhattisgarh
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    छत्तीसगढ़ के इतिहास में सोमवंशी राजवंश का शासनकाल एक स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है। लगभग 750 ईस्वी से 1200 ईस्वी तक शासन करने वाले सोमवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ को कला, वास्तुकला, साहित्य और धर्म के क्षेत्र में नए आयामों तक पहुँचाया। इस लेख में, हम सोमवंशी राजवंश के शासनकाल और छत्तीसगढ़ पर उनके प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

    सोमवंशी राजवंश का उदय:

    सोमवंशी राजवंश छत्तीसगढ़ में सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था। इस वंश के संस्थापक शिवगुप्त बालार्जुन थे, जिन्होंने रायपुर जिले के तुर्रेकला को अपनी राजधानी बनाया। सोमवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ के अधिकांश हिस्सों पर शासन किया और अपने शासनकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं।

    कला और वास्तुकला का उत्थान:

    सोमवंशी राजवंश कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे। इस समय कई भव्य मंदिरों, किलों और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ। सोमवंशी शैली में बने मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ में स्थित सोमवंशी शैली के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में राजिम का राजीव लोचन मंदिर, खल्लारी का गंडेश्वर मंदिर और बारनवापारा का शिव मंदिर शामिल हैं।

    साहित्य का विकास:

    सोमवंशी राजवंश के शासनकाल में साहित्य का भी काफी विकास हुआ। इस समय संस्कृत भाषा में कई ग्रंथों की रचना हुई। सोमवंशी राजाओं ने विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हुआ।

    धर्म का प्रसार:

    सोमवंशी राजवंश के शासनकाल में हिंदू धर्म का प्रसार हुआ। इस समय कई मंदिरों का निर्माण हुआ और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा दिया गया। सोमवंशी राजाओं ने धार्मिक सहिष्णुता का भी पालन किया और अन्य धर्मों को भी स्वतंत्र रूप से पनपने दिया।

    अर्थव्यवस्था का विकास:

    सोमवंशी राजवंश के शासनकाल में छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था भी काफी विकसित हुई। कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया गया, जिससे राज्य की समृद्धि में वृद्धि हुई। व्यापारियों के लिए व्यापार मार्ग सुरक्षित हो गए, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

    सोमवंशी राजवंश का पतन:

    सोमवंशी राजवंश का पतन 1200 ईस्वी के आसपास हुआ। उनके पतन के कारणों में उनके साम्राज्य का विस्तार होना, आंतरिक संघर्ष और बाहरी हमले शामिल थे।

    छत्तीसगढ़ के इतिहास में सोमवंशी राजवंश का महत्व:

    छत्तीसगढ़ के इतिहास में सोमवंशी राजवंश का अमूल्य योगदान है। इस राजवंश के शासनकाल ने छत्तीसगढ़ को कला, वास्तुकला, साहित्य और धर्म के क्षेत्र में नए आयामों तक पहुँचाया। आज भी, सोमवंशी राजवंश के शासनकाल के अवशेष, जैसे कि भव्य मंदिर, किले और मूर्तियाँ, छत्तीसगढ़ के गौरवमयी अतीत की गवाही देते हैं।

    छत्तीसगढ़ के लोग सोमवंशी राजवंश को अपने इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखते हैं। सोमवंशी राजाओं की उपलब्धियां आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं।


    छत्तीसगढ़ आने वाले पर्यटक सोमवंशी राजवंश के शासनकाल के अवशेषों को देख सकते हैं और छत्तीसगढ़ के समृद्ध इतिहास के बारे में अधिक जान सकते हैं। सोमवंशी राजवंश का शासनकाल छत्तीसगढ़ के लोगों को गर्व और प्रेरणा देता है।

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