कुटुमसर को शुरू में गोपांसर गुफा (गोपन = छुपा) नाम दिया गया था, लेकिन वर्तमान नाम कुटुमसर अधिक लोकप्रिय हो गया क्योंकि गुफा ‘कोटसर’ नामक गांव के पास स्थित है। कुटुमसर गुफा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के पास स्थित है। कुटुमसर गुफा पर्यावरणीय पर्यटनमें रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यह कोलेब नदी की एक सहायक नदी केगर नदी के किनारे स्थित केंजर चूना पत्थर बेल्ट पर गठित एक चूना पत्थर गुफा है।
कुटुमसर की गुफा जमीन से 55 फुट नीचे हैं। इनकी लंबाई 330 मीटर है। इस गुफा के भीतर कई पूर्ण विकसित कक्ष हैं जो 20 से 70 मीटर तक चौड़े हैं। विश्वप्रसिद्ध बस्तर की कुटुमसर गुफा कई रहस्यों को अभी भी अपने में समेटे हुए है जिनका द्वारा लगातार अध्ययन किया जा रहा है।अगर इस गुफा के तापमान की बात की जाए तो कुटुमसर गुफाओं में बाहर के तापमान और गुफा के अंदर का तापमान में 15 से 20 डिग्री का अंतर रहता है। गर्मी में गुफा बाहर की तुलना में ठंडी और सर्दी में गर्म रहती है।
एक अध्ययन से पता चला है कि करोड़ों वर्ष पूर्व प्रागैतिहासिक काल में बस्तर की कुटुमसर की गुफाओं में मनुष्य रहा करते थे। चूना पत्थर से बनी कुटुमसर की गुफाओं के आंतरिक और बाह्य रचना के अध्ययन के बाद शोधकर्ता कई निष्कर्षों पर पहुंचे हैं। उदाहरण के लिए चूना पत्थर के रिसाव, कार्बन डाईक्साइड तथा पानी की रासायनिक क्रिया से सतह से लेकर छत तक अद्भुत प्राकृतिक संरचनाएं गुफा के अंदर बन चुकी हैं।
कुटुमसर की गुफा में बनी आकृतियां
इस गुफा के भीतर चुने हुए पत्थर से बने स्टेलाइटाइट और स्टैलेग्माइट आकृतियां पाई जा सकती हैं। इस गुफा में बहुत अधिक अंधेरा रहता है जब इन पर टॉर्च की रौशनी पड़ती है तो यहां चूना पत्थर से बनी विभिन्न आकृतियां चमक उठती है जिन्हें देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपको इन आकृतियों में जितने रूप पसंद हैं, उतने ही रूप देखने को मिलेंगे।
इस गुफा के अंदर बनी आकृतियां चूना पत्थर, कार्बनडाईऑक्साइड और पानी की रासायनिक क्रिया के कारण उपर से नीचे की ओर कई सारी प्राकृतिक संरचनाएं बन गई है जो अब भी धीरे धीरे बनते ओर बढ़ते जा रहे है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है साथ ही यह कोटमसर गुफा ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से जुड़ा हुआ है।
गुफे की अंधी मछलियाँ
कोटमसर ( कुटुमसर ) के अंदर कई सारे जीव जंतु है लेकिन पूरे भारत में सिर्फ इस गुफा के अंदर रंग बिरंगे अंधी मछली पाई जाती है। इस मछली के प्रजाति का नाम गुफा के खोजकर्ता प्रो. शंकर तिवारी के नाम पर रखा गया है।। यह गुफाएं बहुत पुरानी बनी है और अंधी मछलियों के लिए मशहूर है। जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती जिसके कारण यहां आने वाला व्यक्ति पूरी तरह अंधा महसूस करता है। जिसके कारण यहां कि मछलियों की आखों पर एक पतली सी झिल्ली चढ़ चुकी है, जिससे वे पूरी तरह अंधी हो गई हैं।
कोटमसर गुफा का इतिहास
इस गुफा की खोज का श्रेय प्रोफेसर शंकर तिवारी को जाता है जिन्होंने सन् 1958 में स्थानीय आदिवासियों के सहायता से इस गुफा की खोज की थी। इस गुफा का निर्माण प्राकृतिक रूप से प्रकृति में कई तरह के बदलाव और पानी के बहाव के कारण इस गुफा का निर्माण हुआ है। कोटमसर गुफा का शुरुआती नाम गोंपसर था लेकिन गुफा के समीप ही कोटमसर ग्राम होने के कारण इस गुफा का नाम कोटमसर गुफा पड़ गया।
शोधकर्ताओं के अनुसार यहां प्रागैतिहासिक काल में आदिमानव निवास करते थे। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान राम जी ने अपने वनवास काल के दौरान इस गुफा में वास किया था साथ ही इस गुफा के अंदर शिवलिंग है जिसे स्थानीय लोग कई वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं।
कई चरणों में बनी है ये गुफा
इसे लेकर बस्तर यूनिर्वसिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अमितांशु शेखर झा ने बताया कि कुटुमसर की हर गुफाओं की ऊंचाई अलग-अलग है। इसके कारण के बारे में ये कहा जा सकता है कि गुफा के अंदर की संरचनाओं को देखने से लगता है कि करोड़ों साल पुरानी इस गुफा कई चरणों में बनकर तैयार हुई होगी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कारणों से गुफा के अंदर कई बार टूट फूट हुई। फिर लाखों साल में प्राकृतिक रूप से इसका निर्माण हुआ। इसके कुछ समय बाद गुफाएं फिर टूटीं, फिर बनीं। इस तरह से कई बार ये क्रम चला होगा। यहां करीब 110 करोड़ साल पहले के समुद्री कवक के अवशेष भी मिले हैं।
आसपास की गुफाएँ
यहां आसपास की दंडक, कैलाश, देवगिरि और कुटुमसर समेत 12 गुफाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। फिलहाल यह तलाश जारी है कि ये नई गुफा किस गुफा से जुड़ी हुई है। वहीं रेडियो कार्बन डेटिंग के जरिए इसकी उम्र का पता लगाया जाएगा। कहा जा रहा है कि गुफा में समुद्री जीवों के अवशेष तक मिले हैं।
कैसे जाएँ
- निकटतम हवाई अड्डा – स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा रायपुर और जगदलपुर हवाई अड्डा
- निकटतम रेलवे स्टेशन – जगदलपुर रेलवे स्टेशन।
- सडक मार्ग – जगदलपुर कई बड़े शहरो से जुड़ा हुआ है आप वाहनों की मदद से आसानी से पहुंच सकते हैं।
कब जायें
अगर आप कोटमसर गुफा आने का मन बना रहे हैं तो आपको कुछ जरूरी बातों का ध्यान में रखना चाहिए। यह गुफा घने जंगल के बीच है जो कई आपको इस गुफा तक जाने के लिए जिप्सी का इस्तेमाल करना होगा जिसका किराया लगभग 1500 रुपए है।
इस गुफा को मानसून के दौरान बंद के दिया जाता है क्योंकि इस समय गुफा में पानी भरने और अन्य जहरीले जीव जंतु से खतरा रहता है। इस गुफा को देखने का सबसे अच्छा समय ठंड के मौसम में होता है।
गुफा में प्रवेश करने से पहले आपके पास एक अधिक रोशनी वाला टॉर्च होना चाहिए ताकि आप इस गुफा के अंदर की खूबसूरती को निहार सकें इसके अलावा आपके पास अच्छे जूते होने चाहिए ताकि गुफा के अंदर फिसलन से बच सकें।